Hindi Basic Photography Tutorials for beginners
अगर आपने अभी अभी एक DSLR लिया है और आप अभी photography में नए हैं तो हम आपको इस आर्टिकल Hindi Basic Photography Tutorials for beginners से photography के basic rules और फंडामेंटल्स को सीखने में मदद करेंगे. photography tutorials के बारे में जानते हैं की photography शब्द है क्या?फोटोग्राफी वर्ड दो वर्ड या शब्द से मिलकर बना है, photo+graphy. photo एक ग्रीक वर्ड है जिसका मतलब है लाइट और graphy का मतलब है ड्राइंग करना या चित्र बनाना.
फोटोग्राफी का हिंदी में मतलब हुआ लाइट से ड्राइंग करना या चित्र बनाना. इस पर ध्यान दें तो हमें पता चलता है कि photography का सबसे important एलिमेंट है लाइट. बिना लाइट के एक फोटो की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. कैमरा की मदद से हम लाइट को सही मात्रा में कम या ज्यादा करके फोटो ले पाते हैं जिसे एक्सपोज़र कहते हैं . लाइट या एक्सपोज़र को प्रभावित करने वाले तीन एलेमेंट्स होते हैं 1-Aperture(अपर्चर) 2- Shutter speed (शटर स्पीड) 3-ISO( आईएसओ). इन तीनों एलेमेंट्स का संयोजन Exposure triangle (एक्सपोज़र ट्रायंगल) कहलाता है.
एक अच्छे photo के लिए हमें एक्सपोज़र ट्रायंगल को सही अनुपात में रखना होता है. इसी की वजह से photo को न केवल सही एक्सपोज़र मिल पता है बल्कि यह आपकी photo के appearance को भी प्रभावित करता है. इस आर्टिकल के जरिये आज हम एक्सपोज़र ट्रायंगल के पहले एलिमेंट यानि Aperture के बारे में जानेंगे.
Aperture(अपर्चर)
सबसे पहले जानते हैं कि ये अपर्चर होता क्या है? हम अपर्चर को इन्सान की आँख में iris या पुतली से relate कर सकते हैं. अगर आप ध्यान दें तो देखेंगे कि अँधेरे से उजाले में आने पर हमारी आँख की पुतली सिकुड़ जाती है और कम लाइट या अँधेरे में जाने पर फ़ैल जाती है. यह वास्तव में किसी भी चीज को देखने में हमें जितनी लाइट की ज़रूरत होती है उसे सिकुड़कर कर या फैलकर वही मात्रा हमारी आँख को उपलब्ध कराती है या आसान शब्दों में कहें तो लाइट को को कण्ट्रोल करती है. अपर्चर भी कैमरा में ठीक यही काम करता है तो इसे हम कैमरा की iris कह सकते हैं.
अगर आप अपने DSLR,film या mirror less कैमरा के लेंस के बीच में देखेंगे तो आपको अपर्चर साफ़ दिखाई देता है यह कुछ ब्लेड जैसे एलिमेंट्स से मिलकर बना होता है.

लेंस के पिछले हिस्से में मौजूद अपर्चर पिन को आप थोड़ा सा खीचेंगे तो देखेंगे किअपर्चर खुल रहा है और आप जब इसे छोड़ते हैं तो देखेंगे की यह बंद हो रहा है. film कैमरा के या थोड़ा पुराने लेंस में अपर्चर रिंग होती है अगर आपके पास कोई ऐसा लेंस है तो आप इस रिंग को रोटेट कर के देख सकते हैं. जितना ज्यादा आप अपर्चर को खोलेंगे उतनी ज्यादा मात्रा में लाइट आपके कैमरा के सेंसर तक पहुँचती है.

f-stop
अभी तक हमने जाना की जितना कम या ज्यादा हम अपर्चर को खोलते हैं उसी मात्रा में कम या ज्यादा लाइट हमारे कैमरा के सेंसर तक पहुँचती है. अपर्चर को खोलने की मात्रा को f-stop कहते हैं. इसका मतलब यह है कि अपर्चर को खलने पर लाइट की जो मात्रा कैमरा के सेंसर तक पहुँच रही है उसे 1 f-stop कहा जाता है. जैसे f 1.8 . f 2.8, f 5.6 ,f8 या f22.

यहाँ पर हमें हमेशा याद रखना है कि जितना कम नंबर का f-stop उतनी ज्यादा लाइट और जितना ज्यादा नंबर का f-stop उतनी कम लाइट कैमरा के सेंसर तक पहुँचती है. उदाहरण के लिए अगर हम कैमरा का अपर्चर f1.4 पर रखते हैं तो हमें ज्यादा लाइट मिलेगी और f 22 पर बहुत कम लाइट मिलेगी. यह थोड़ा confusing होता है लेकिन जब आप इसे याद रखते हैं तो यह आसान हो जाता है.
ऊपर दिए गये चार्ट में यह भी ध्यान रखें कि एफ / 2.8 से एफ / 16 तक काफी ज्यादा deference है. आंकड़े में, स्पष्ट करने के लिए कई एफ-स्टॉप छोड़े गए थे। एफ / 2.8 और एफ / 16 के बीच, चार पूर्ण स्टॉप हैं, क्योंकि नीचे एफ-स्टॉप स्केल दर्शाता है. एफ-स्टॉप स्केल f 1 (कुछ ही कैमरा में ) से शुरू हो सकता है और एफ / 32 पर समाप्त हो सकता है। हालांकि, अधिकांश वीडियो या फिल्म कैमरे इतना नैरो नहीं जाते हैं, हालांकि कुछ अभी भी कैमरे f / 64 और उससे आगे के सभी तरह से बंद हो सकते हैं।
यह भी ध्यान दें कि उपरोक्त स्केल केवल पूर्ण स्टॉप दिखाता है, एक पूर्ण स्टॉप और अगले के बीच मौजूद आंशिक स्टॉप को नहीं दिखा रहा है. पूरे स्टॉप महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे आधे या लाइट के प्रवेश या अवरोध का प्रतिनिधित्व करते हैं. उदाहरण के लिए: f 1 f 1.4 से दो गुना ज्यादा लाइट देता है। इसी तरह, f-1.4, f-2 से दो गुना अधिक लाइट देता है. दूसरी ओर, f-16, f-11 के रूप में आधे से ज्यादा लाइट देता है। और f-5.6 आधे से अधिक लाइट को f-4 के रूप में देता है.
Depth of Field (डेप्थ ऑफ़ फील्ड)
सबसे पहले जानते हैं की डेप्थ ऑफ़ फील्ड होता क्या है? जब हम किसी सब्जेक्ट को फोकस में लेते हैं तो उस सब्जेक्ट के आगे और पीछे का वह हिस्सा जो अच्छी तरह से फोकस में है और एकदम शार्प है, उसे डेप्थ ऑफ़ फील्ड कहा जाता है. अपर्चर का डेप्थ ऑफ़ फील्ड में बहुत ही important रोल है.

ऊपर दिए गये example में जो रेड कलर हिस्सा है वह डेप्थ ऑफ़ फील्ड है. यानि रेड हिस्से में जो भी चीजें आएँगी वो शार्प फोकस में होंगी. देखने पर हमको पता चलता है कि जितने बड़े अपर्चर (कम नंबर वाले ) पे हम photo शूट करते हैं उतनी कम डेप्थ ऑफ़ फील्ड हमें मिलती है और जितने छोटे अपर्चर (ज्यादा नंबर वाले) पर शूट करते हैं उतनी ज्यादा डेप्थ ऑफ़ फील्ड हमें मिलती है.
ऊपर दिए गये example में जो रेड कलर हिस्सा है वह डेप्थ ऑफ़ फील्ड है. यानि रेड हिस्से में जो भी चीजें आएँगी वो शार्प फोकस में होंगी. देखने पर हमको पता चलता है कि जितने बड़े अपर्चर (कम नंबर वाले ) पे हम photo शूट करते हैं उतनी कम डेप्थ ऑफ़ फील्ड हमें मिलती है और जितने छोटे अपर्चर (ज्यादा नंबर वाले) पर शूट करते हैं उतनी ज्यादा डेप्थ ऑफ़ फील्ड हमें मिलती है.

ऊपर इस photo को हम देखते हैं तो हमें पता चलता है की photo में हमारा पहला लेंस तो फोकस में है लेकिन दूसरा लेंस और बैकग्राउंड फोकस में नहीं है. क्योंकि इसे अपर्चर f-2 पर शूट किया गया है. यहाँ पर हमारे सब्जेक्ट जितना हिस्सा ही फोकस में है यानि डेप्थ ऑफ़ फील्ड बहुत नैरो है, और पिक्चर ब्राइट है.

अब इस दूसरी photo को हम देखें तो पता चल रहा है कि इसमें हमारे दोनों लेंस और बैकग्राउंड भी अच्छी तरह से दिख रहे हैं या फोकस में हैं. इस photo को अपर्चर f-22 पर शूट किया गया है. इस पिक्चर में डेप्थ ऑफ़ फील्ड वाइड है. और पिक्चर में लाइट थोड़ी कम है (इस अपर्चर पर लाइट बहुत कम हो जाती है, इसे हमने शटर स्पीड और आइएसओ की मदद से कण्ट्रोल किया है)
इन दोनों pictures के जरिये हमने देखा कि अपर्चर का हमारी pictures पर कितना इफ़ेक्ट पड़ता है. ये न सिर्फ डेप्थ ऑफ़ फील्ड को कण्ट्रोल करता है बल्कि कैमरा के सेंसर तक आने वाली लाइट को भी कण्ट्रोल करता है. हालांकि लाइट यानि एक्सपोजर को एक्सपोजर ट्रायंगल के दो दुसरे एलिमेंट भी कण्ट्रोल करते हैं. तो ऐसी कंडीशन में हम शटर स्पीड, अपर्चर और आइएसओ की मदद से हमारी photos को सही एक्सपोज़र दे सकते हैं.
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