मध्यप्रदेश की राजनीति में मालवा इलाके को सत्ता की कुंजी माना जाता है. कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियां बखूबी जानतीहैं कि अगर मालवा पर कब्जा कर लिया तो फिर एमपी की सत्ता हासिल करने में आसानी होगी. यह क्षेत्र लंबे समय से भाजपाऔर संघ का गढ़ बना हुआ है. वर्तमान में मालवा क्षेत्र की 50 सीटों में 45 सीटों पर भाजपा का कब्जा है. पिछले 15 सालों सेसत्ता से दूर कांग्रेस को अगर सत्ता में वापस लौटना है तो उसे भाजपा के इस मजबूत गढ़ में सेंध लगाने की जरूरत पड़ेगीइसलिये कांग्रेस इस बार मालवा पर ज्यादा फोकस कर रही है. इस कड़ी में अक्टूबर के आखिरी दिनों में राहुल गांधी का दोदिनों का मालवा-निमाड़ दौरा काफी चर्चित रहा. उनके इस दौरे ने मध्यप्रदेश में चुनावी हलचल को तेज कर दिया है. अपने पूर्वके दौरों के मुकाबले मालवा-निमाड़ में राहुल गांधी पूरी तरह से अपने स्वाभाविक मिजाज में नजर आये. इस दौरान वे एक सधेहुये नेता के तौर पर सहज और आक्रामक दोनों थे, जनता और मीडिया के साथ उनका कनेक्शन देखते ही बनता था. हालांकियहां उनका कनफ्यूजन सामने आया लेकिन उन्होंने इसे बखूबी हैंडल भी कर लिया. अपने इस दौरे से उन्होंने मालवा-निमाड़में काफी हद तक कांग्रेस के लिये चुनाव का माहौल बना दिया है. राहुल के दौरे के दौरान उनके लिए स्वाभाविक रूप से उमड़ेजनसैलाब से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और नेताओं में जबरदस्त उत्साह है. अब देखना है कि क्या कांग्रेस राहुल के इस दौरे सेबने माहौल को प्रदेश के दूसरे हिस्सों में भी भुना पायेगी?
कनफ्यूजन और सलयूशन
मध्यप्रदेश में कांग्रेस अमूमन अपने प्रादेशिक क्षत्रपों को सामने रख कर मैदान में उतरती रही है लेकिन इस बार ऐसा लगता हैकांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष खुद को फ्रंट पर रखते हुये मैदान में हैं, हालांकि इस बार मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने शिवराज केखिलाफ पार्टी की तरफ से करीब आधा दर्जन चेहरों को कमलनाथ और सिंधिया के रूप में दो चेहरों में सीमित कर दिया है,यहां तक कि दिग्विजय सिंह जैसे नेता को नेपथ्य में भेज दिया गया है. लेकिन इससे कांग्रेस के लिए यह सवाल पूरी तरह सेहल नहीं हो सका है कि शिवराज के सामने कांग्रेस की तरफ से किसका चेहरा होगा? ऐसे में राहुल गांधी कमलनाथ औरसिंधिया दोनों को साथ में रखते हुये खुद फ्रंट पर दिखाई दे रहे हैं.
मध्यप्रदेश में अपने इसी भूमिका को निभाते हुये आजकल राहुल गाँधी कुछ अलग ही अंदाज में दिखाई दे रहे हैं जिसे देखकरलगता है कि एक नेता के तौर पर उनकी लंबी और उबाऊ ट्रेनिंग खत्म हो चुकी है, एक नेता के तौर पर अब उनका खुद परबेहतर नियंत्रण दिखाई पड़ रहा है साथ ही उनके हमले विरोधियों को इस कदर परेशान करने लगे हैं कि वे मानहानि का केसकर रहे हैं.
हालांकि वे अपनी पुरानी समस्याओं से अभी तक उबर नहीं पाये हैं लेकिन अब वे इनका हल भी पेश करने लगे हैं. मालवा मेंअपने अभियान के दौरान राहुल गलती से कह गये कि पनामा पेपर में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पुत्रका नाम है जिसने भाजपा और शिवराज को उन पर हमला करने का मौका दे दिया. इस पर शिवराजसिंह का कहना था कि‘राहुल कंफ्यूज आदमी हैं जो मामा को पनामा कह गए.’ उन्होंने राहुल पर कानूनी कार्रवाई की चेतावनी देते हुये कहा कि ‘वेराहुल गांधी के खिलाफ उनके परिवार पर कीचड़ उछालने के आरोप में मानहानि का मुकदमा करेंगे.’
बाद में राहुल गाँधी इस पर सफाई पेश करते हुये नजर आये हालांकि उनके इस सफाई का अंदाज भी दिलचस्प और चिढ़ानेवाला था. अपने बयान पर सफाई पेश करते हुये राहुल ने कहा कि ‘भाजपा शासित राज्यों में इतने घोटाले हुए हैं कि मैंकन्फ्यूज हो गया, पनामा पेपर लीक तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के बेटे का मामला है, मप्र के सीएम ने तो ई-टेंडरिंग औरव्यापमं घोटाला किया है.’
इसके बाद शिवराज के बेटे कार्तिकेय द्वारा राहुल गांधी के खिलाफ भोपाल कोर्ट में मानहानि का परिवाद पेश कर दिया गयाजिस पर खरगोन के एक रैली के दौरान पलटवार करते राहुल गांधी ने कहा कि ‘वे मानहानि मुकदमों से नहीं डरते और जनताके हित में सच्चाई बयान करते रहेंगे और शिवराज चौहान भी मानहानि का मुकदमा लगाते हैं तो लगा दें.’ उन्होंने एक बारफिर शिवराजसिंह और उनके परिवार को निशाना बनाते हुये कहा कि ‘यह सर्वविदित है कि चौहान तथा उनका परिवार व्यापमघोटाले में खुले तौर पर शामिल रहा है जिसमें 50 लोगों की हत्या भी हुई है और इसके चलते प्रदेश के लाखों युवा बेरोजगारोंको नौकरी से वंचित रहना पड़ा और उनका भविष्य समाप्त हो गया.’
शिवभक्त “भोले” राहुल का नया अवतार
गुजरात विधानसभा चुनाव ने राहुल गांधी और उनकी पार्टी को एक नयी दिशा दी है, इसे भाजपा और संघ के खिलाफ काउंटर नैरेटिव तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इसने राहुल और उनकी पार्टी को मुकाबले में वापस आने में मदद जरूर मिली है. खुद राहुल गांधी में सियासी रूप से लगातर परिपक्वता आयी है और वे लोगों के कनेक्ट होने की कलां को भी तेजी से सीखे हैं, आज वे मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष की सबसे बुलंद आवाज बन चुके हैं. वे अपने तीखे तेवरों से नरेंद्र मोदी की “मजबूत” सरकार को बैकफुट पर लाने में कामयाब हो रहे हैं रफेल का मामला इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जिसमें मोदी सरकार बुरी तरह से घिरी नजर आ रही है.
मध्यप्रदेश में भी पिछले कुछ महीनों के अपने चुनावी अभियान के दौरान वे ध्यान खीचने कामयाब रहे हैं जिसमें प्रदेश की जनता के अलावा प्रदेश के कई सीनियर पत्रकार भी शामिल हैं. मध्यप्रदेश के अपने पिछले दौरों में राहुल गांधी का भाषण मुख्य रूप राष्ट्रीय मुद्दों और मोदी सरकार को निशाना बनाने पर ही फोकस रहता था स्थानीय मूदों के नाम पर वे स्थान के हिसाब से मेड इन भोपाल , मेड इन चित्रकूट, मेड इन मंदसौर मोबाइल जोड़ देते थे. जिसकी वजह से उनके भाषण स्थानीय लोगों को कनेक्ट नहीं कर पाते थे. लेकिन अपने मालवा दौरे में राहुल लोकल मुद्दों पर ज्यादा जोर देते हुये नजर आये, इंदौर में होटलों और सावर्जनिक स्थानों पर वे बहुत ही सहजता और औपचारिकता के साथ लोगों से घुलते मिलते नजर आये. यहां भी राहुल अपनी हिन्दू पहचान के प्रदर्शन को जारी रखते हुये महाकाल मंदिर गये.
इंदौर में राहुल गाँधी प्रदेश के चुनिन्दा संपादकों/पत्रकारों से मिले थे जिसमें शामिल होने के बाद वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश हिन्दुस्तानी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि “इंदौर में राहुल गांधी से मिलकर लगा कि वे कुटिल भले ही नहीं हो, लेकिन परिपक्व तो हो ही गए हैं.आक्रामक!बेबाक और बेलौस स्वीकारोक्तियां,जुबान से डंक मारने की कला सीखने के विद्यार्थी लेकिन संवेदनशील. राहुल गाँधी को लेकर कुछ इस तरह का इम्प्रैशन प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और दैनिक एल एन स्टार के संपादक प्रकाश भटनागर का भी है जिनका कहना है कि “अतीत के तमाम प्रहसनों को पीछे छोड़कर गांधी ने अब वाकई किसी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसे तेवर हासिल कर लिए हैं”.
वरिष्ठ पत्रकार रिज़वान अहमद सिद्दीक़ी कहते हैं कि राहुल गाँधी के बारे में जिस तरह के दुष्प्रचार होते रहे हैं उनसे रूबरू हुये ज़्यादातर सम्पादकों के अनुभव उससे बिलकुल विपरीत रहे.
संपादकों की मुलाक़ात उनसे सीधे सवाल पूछे गये जिसका उन्होंने सधे हुये तरीके से के साथ जवाब दिया जबकि सवाल फिक्स नहीं थे. इस दौरान वे खुद को और अपनी राजनीति को भी खोलते नजर आये हिन्दू, और हिन्दुत्व के बीच मोटी लकीर खीचते हुए उन्होंने कहा कि हिन्दू, हिन्दूवादी और हिन्दुत्व अलग अलग हैं, मै हिंदुत्व नही हिंदूवाद का पक्षधर हूँ , हिंदूवाद एक महान परंपरा है जो सबको लेकर चलता है है ,सबकी सुननाता और सबका आदर करता है मैं हिन्दू हूँ लेकिन सभी धर्म का आदर करता हूँ, , मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा आदि सभी जगह जाता हूँ. मैं‘हिंदूवादी नेता' नहीं, बल्कि हर धर्म और हर वर्ग के नेता हूँ.
इस दौरान जब राहुल गांधी से एक पत्रकार ने पूछा कि आपको भाजपा वाले पप्पू क्यों कहते हैं राहुल गांधी का जवाब था कि मैं शिवभक्त हूँ शंकर जी का दूसरा नाम भोले नाथ है और मै भला और भोला हूँ.
कांग्रेस की उम्मीदें
2013 के विधानसभा चुनाव के दौरान मालवा-निमाड़ की करीब 86 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस केवल 10 सीटें ही जीत सकी थी. लेकिन इस बार बदली परस्थितियों के चलते कांग्रेस को माहौल अपने अनुरूप लग रहा है, मंदसौर में किसान आंदोलन की राखें अभी बुझी नहीं है,सवर्ण आन्दोलन का भी विपरीत असर पड़ सकता है. किसानों के आक्रोश और सवर्ण जातीय की नाराजगी में कांग्रेस अपनी वापसी का रास्ता देख रही है. बसपा से गठबंधन का न हो पाने को भी कांग्रेस अपने लिये प्लस पॉइंट के रूप में देख रही है कांग्रेस को लगता है कि इससे स्वर्ण मतदाता उसकी तरफ वापसी कर सकते हैं
बहरहाल मध्यप्रदेश में राहुल के चुनावी अभियान के उमड़ने वाली भीड़ कितना वोट में तबदील होगी यह आने वाला वक्त ही बताएगा. लेकिन उन्होंने चुनावी माहौल में हलचल जरूर पैदा कर दिया है
बॉक्स 1- मध्यप्रदेश में चुनाव अभियान से नरेंद्र मोदी की दूरी ?
ऐसा लगता है कि मध्यप्रदेश में में चुनाव अभियान से भाजपा के सबसे बड़े स्टार प्रचारक सेफ दूरी बना कर चल रहे हैं, जहां एक तरफ राहुल गांधी मध्यप्रदेश को सबसे ज्यादा समय दे रहे हैं और यहां उनके निशाने पर शिवराज से ज्यादा मोदी और उनकी सरकार ही होती है वहीँ नरेंद्र मोदी प्रदेश के चुनावी परिदृश्य से अभी तक नरादाद हैं. राज्य में भाजपा के चुनाव प्रचार अभियान में भी केंद्र की उपलब्धियां पर ना के बराबर हो फोकस किया जा रहा है.
खबरें आ रही है कि मध्यप्रदेश में नरेंद्र मोदी के चुनावी सभाओं में कमी की गयी है और अब वे मध्यप्रदेश में केवल दस जनसभायें ही करेंगें इसी तरह से राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी वे तुलनात्मक रूप से कम जनसभायें करेंगें. शायद निगेटिव बैक को देखते हुये यह निर्णय लिया गया है जिससे अगर इन राज्यों में भाजपा की हार होती है तो इसके जिम्मेदारी मौजूदा मुख्यमंत्रियों पर टाली जा सके और 2019 लोकसभा चुनाव के लिये मोदी ब्रांड को बचाये रखा जा सके .
इसी तरह से अमित शाह भी यहां बहुत ज्यादा सक्रिय दिखाई नहीं पड़ रहे हैं. पहले बताया गया था कि विधानसभा के दौरान वे मध्यप्रदेश में ही कैम्प करेंगें लेकिन अंत में ऐसा कुछ नहीं हुआ. अमित शाह का पिछला मालवा दौरा भी बहुत उत्साहजनक नहीं रहा इस दौरान उन्हें सपाक्स जैसे संगठनों की तरफ से विरोध का सामना पड़ा था.
बॉक्स 2 - दिग्गी राजा व्यस्त है
राहुल गांधी के मालवा दौरे के दौरान भी दिग्विजय सिंह अपने आप को बैकग्राउंड में ही बनाये रखे हालांकि इंदौरउनकी जमीन मानी जाती है लेकिन फिर भी वे नरादद रहे. राहुल के मालवा दौर के दौरान दिग्विजय सिंह की जगह उनके दो ट्वीट सामने आये पहले ट्वीट में उन्होंने उन्होंने राहुल का इंदौर में स्वागत करते हुये लिखा कि 'मैं इंदौर में पैदा हुआ स्कूल व कॉलेज की शिक्षा भी इंदौर में हुई आज राहुल गॉंधी जी इंदौर पहुँच रहे हैं मैं उनकाहार्दिक स्वागत करता हूँ”.जबकि अपने दुसरे ट्वीट में उन्होंने राहुल के दौरे में शमिल ना हो पाने के पीछे तर्क देते हुये लिखा कि “मुझे अध्यक्ष जी ने कुछ आवश्यक कार्य सौंपा हुआ है जिसके कारण राहुल जी के इंदौर उज्जैनकार्यक्रम में अनुपस्थित रहूँगा क्षमा करें. सभी मित्रों से राहुल जी का गर्म जोशी से स्वागत करने की अपील करताहूँ”.
गौरतलब है कि दिग्विजय सिंह लगातार राहुल गाँधी के दौरों और जनसभाओं से दूरी बनाकर चल रहे. हालांकि परदे के पीछे से वे काफी सक्रिय हैं. दरअसल दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश में पिछले करीब दो सालों से लगातर जमीनस्तर पर अपनी सक्रियता बनाये हुये हैं और प्रदेश की राजनीति में इस मामले में उनका मुकाबला केवल शिवराज ही कर सकते हैं. मध्यप्रदेश में उनकी जमीनी पकड़ का अंदाजा पिछले दिनों आजतक चैनल के कार्यक्रम में दिये गये उनके उस बयान से लगाया जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा था कि मध्य प्रदेश को थोड़ा बहुत में भी जानता हूँ मैं हर ब्लॉक के लोगों को जानता हूं, कौन कितना लोकप्रिय है, थोड़ा बहुत मुझे भी अंदाजा है, परिक्रमा करने के बाद इसे मैंने और पुख्ता कर लिया,आज 230 सीटों पर कौन उम्मीदवार हो सकता है, मैं बिना कागज देखे आपको बता सकता हूं.
जाहिर है दिग्विजय सिंह जैसे मिजाज का नेता अगर परदे के पीछे रहकर व्यस्त है तो इसके गहरे निहितार्थ हो सकते हैं.
मध्यप्रदेश की राजनीति में मालवा इलाके को सत्ता की कुंजी माना जाता है. कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियां बखूबी जानतीहैं कि अगर मालवा पर कब्जा कर लिया तो फिर एमपी की सत्ता हासिल करने में आसानी होगी. यह क्षेत्र लंबे समय से भाजपाऔर संघ का गढ़ बना हुआ है. वर्तमान में मालवा क्षेत्र की 50 सीटों में 45 सीटों पर भाजपा का कब्जा है. पिछले 15 सालों सेसत्ता से दूर कांग्रेस को अगर सत्ता में वापस लौटना है तो उसे भाजपा के इस मजबूत गढ़ में सेंध लगाने की जरूरत पड़ेगीइसलिये कांग्रेस इस बार मालवा पर ज्यादा फोकस कर रही है. इस कड़ी में अक्टूबर के आखिरी दिनों में राहुल गांधी का दोदिनों का मालवा-निमाड़ दौरा काफी चर्चित रहा. उनके इस दौरे ने मध्यप्रदेश में चुनावी हलचल को तेज कर दिया है. अपने पूर्वके दौरों के मुकाबले मालवा-निमाड़ में राहुल गांधी पूरी तरह से अपने स्वाभाविक मिजाज में नजर आये. इस दौरान वे एक सधेहुये नेता के तौर पर सहज और आक्रामक दोनों थे, जनता और मीडिया के साथ उनका कनेक्शन देखते ही बनता था. हालांकियहां उनका कनफ्यूजन सामने आया लेकिन उन्होंने इसे बखूबी हैंडल भी कर लिया. अपने इस दौरे से उन्होंने मालवा-निमाड़में काफी हद तक कांग्रेस के लिये चुनाव का माहौल बना दिया है. राहुल के दौरे के दौरान उनके लिए स्वाभाविक रूप से उमड़ेजनसैलाब से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और नेताओं में जबरदस्त उत्साह है. अब देखना है कि क्या कांग्रेस राहुल के इस दौरे सेबने माहौल को प्रदेश के दूसरे हिस्सों में भी भुना पायेगी?
कनफ्यूजन और सलयूशन
मध्यप्रदेश में कांग्रेस अमूमन अपने प्रादेशिक क्षत्रपों को सामने रख कर मैदान में उतरती रही है लेकिन इस बार ऐसा लगता हैकांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष खुद को फ्रंट पर रखते हुये मैदान में हैं, हालांकि इस बार मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने शिवराज केखिलाफ पार्टी की तरफ से करीब आधा दर्जन चेहरों को कमलनाथ और सिंधिया के रूप में दो चेहरों में सीमित कर दिया है,यहां तक कि दिग्विजय सिंह जैसे नेता को नेपथ्य में भेज दिया गया है. लेकिन इससे कांग्रेस के लिए यह सवाल पूरी तरह सेहल नहीं हो सका है कि शिवराज के सामने कांग्रेस की तरफ से किसका चेहरा होगा? ऐसे में राहुल गांधी कमलनाथ औरसिंधिया दोनों को साथ में रखते हुये खुद फ्रंट पर दिखाई दे रहे हैं.
मध्यप्रदेश में अपने इसी भूमिका को निभाते हुये आजकल राहुल गाँधी कुछ अलग ही अंदाज में दिखाई दे रहे हैं जिसे देखकरलगता है कि एक नेता के तौर पर उनकी लंबी और उबाऊ ट्रेनिंग खत्म हो चुकी है, एक नेता के तौर पर अब उनका खुद परबेहतर नियंत्रण दिखाई पड़ रहा है साथ ही उनके हमले विरोधियों को इस कदर परेशान करने लगे हैं कि वे मानहानि का केसकर रहे हैं.
हालांकि वे अपनी पुरानी समस्याओं से अभी तक उबर नहीं पाये हैं लेकिन अब वे इनका हल भी पेश करने लगे हैं. मालवा मेंअपने अभियान के दौरान राहुल गलती से कह गये कि पनामा पेपर में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पुत्रका नाम है जिसने भाजपा और शिवराज को उन पर हमला करने का मौका दे दिया. इस पर शिवराजसिंह का कहना था कि‘राहुल कंफ्यूज आदमी हैं जो मामा को पनामा कह गए.’ उन्होंने राहुल पर कानूनी कार्रवाई की चेतावनी देते हुये कहा कि ‘वेराहुल गांधी के खिलाफ उनके परिवार पर कीचड़ उछालने के आरोप में मानहानि का मुकदमा करेंगे.’
बाद में राहुल गाँधी इस पर सफाई पेश करते हुये नजर आये हालांकि उनके इस सफाई का अंदाज भी दिलचस्प और चिढ़ानेवाला था. अपने बयान पर सफाई पेश करते हुये राहुल ने कहा कि ‘भाजपा शासित राज्यों में इतने घोटाले हुए हैं कि मैंकन्फ्यूज हो गया, पनामा पेपर लीक तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के बेटे का मामला है, मप्र के सीएम ने तो ई-टेंडरिंग औरव्यापमं घोटाला किया है.’
इसके बाद शिवराज के बेटे कार्तिकेय द्वारा राहुल गांधी के खिलाफ भोपाल कोर्ट में मानहानि का परिवाद पेश कर दिया गयाजिस पर खरगोन के एक रैली के दौरान पलटवार करते राहुल गांधी ने कहा कि ‘वे मानहानि मुकदमों से नहीं डरते और जनताके हित में सच्चाई बयान करते रहेंगे और शिवराज चौहान भी मानहानि का मुकदमा लगाते हैं तो लगा दें.’ उन्होंने एक बारफिर शिवराजसिंह और उनके परिवार को निशाना बनाते हुये कहा कि ‘यह सर्वविदित है कि चौहान तथा उनका परिवार व्यापमघोटाले में खुले तौर पर शामिल रहा है जिसमें 50 लोगों की हत्या भी हुई है और इसके चलते प्रदेश के लाखों युवा बेरोजगारोंको नौकरी से वंचित रहना पड़ा और उनका भविष्य समाप्त हो गया.’
शिवभक्त “भोले” राहुल का नया अवतार
गुजरात विधानसभा चुनाव ने राहुल गांधी और उनकी पार्टी को एक नयी दिशा दी है, इसे भाजपा और संघ के खिलाफ काउंटर नैरेटिव तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इसने राहुल और उनकी पार्टी को मुकाबले में वापस आने में मदद जरूर मिली है. खुद राहुल गांधी में सियासी रूप से लगातर परिपक्वता आयी है और वे लोगों के कनेक्ट होने की कलां को भी तेजी से सीखे हैं, आज वे मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष की सबसे बुलंद आवाज बन चुके हैं. वे अपने तीखे तेवरों से नरेंद्र मोदी की “मजबूत” सरकार को बैकफुट पर लाने में कामयाब हो रहे हैं रफेल का मामला इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जिसमें मोदी सरकार बुरी तरह से घिरी नजर आ रही है.
मध्यप्रदेश में भी पिछले कुछ महीनों के अपने चुनावी अभियान के दौरान वे ध्यान खीचने कामयाब रहे हैं जिसमें प्रदेश की जनता के अलावा प्रदेश के कई सीनियर पत्रकार भी शामिल हैं. मध्यप्रदेश के अपने पिछले दौरों में राहुल गांधी का भाषण मुख्य रूप राष्ट्रीय मुद्दों और मोदी सरकार को निशाना बनाने पर ही फोकस रहता था स्थानीय मूदों के नाम पर वे स्थान के हिसाब से मेड इन भोपाल , मेड इन चित्रकूट, मेड इन मंदसौर मोबाइल जोड़ देते थे. जिसकी वजह से उनके भाषण स्थानीय लोगों को कनेक्ट नहीं कर पाते थे. लेकिन अपने मालवा दौरे में राहुल लोकल मुद्दों पर ज्यादा जोर देते हुये नजर आये, इंदौर में होटलों और सावर्जनिक स्थानों पर वे बहुत ही सहजता और औपचारिकता के साथ लोगों से घुलते मिलते नजर आये. यहां भी राहुल अपनी हिन्दू पहचान के प्रदर्शन को जारी रखते हुये महाकाल मंदिर गये.
इंदौर में राहुल गाँधी प्रदेश के चुनिन्दा संपादकों/पत्रकारों से मिले थे जिसमें शामिल होने के बाद वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश हिन्दुस्तानी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि “इंदौर में राहुल गांधी से मिलकर लगा कि वे कुटिल भले ही नहीं हो, लेकिन परिपक्व तो हो ही गए हैं.आक्रामक!बेबाक और बेलौस स्वीकारोक्तियां,जुबान से डंक मारने की कला सीखने के विद्यार्थी लेकिन संवेदनशील. राहुल गाँधी को लेकर कुछ इस तरह का इम्प्रैशन प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और दैनिक एल एन स्टार के संपादक प्रकाश भटनागर का भी है जिनका कहना है कि “अतीत के तमाम प्रहसनों को पीछे छोड़कर गांधी ने अब वाकई किसी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसे तेवर हासिल कर लिए हैं”.
वरिष्ठ पत्रकार रिज़वान अहमद सिद्दीक़ी कहते हैं कि राहुल गाँधी के बारे में जिस तरह के दुष्प्रचार होते रहे हैं उनसे रूबरू हुये ज़्यादातर सम्पादकों के अनुभव उससे बिलकुल विपरीत रहे.
संपादकों की मुलाक़ात उनसे सीधे सवाल पूछे गये जिसका उन्होंने सधे हुये तरीके से के साथ जवाब दिया जबकि सवाल फिक्स नहीं थे. इस दौरान वे खुद को और अपनी राजनीति को भी खोलते नजर आये हिन्दू, और हिन्दुत्व के बीच मोटी लकीर खीचते हुए उन्होंने कहा कि हिन्दू, हिन्दूवादी और हिन्दुत्व अलग अलग हैं, मै हिंदुत्व नही हिंदूवाद का पक्षधर हूँ , हिंदूवाद एक महान परंपरा है जो सबको लेकर चलता है है ,सबकी सुननाता और सबका आदर करता है मैं हिन्दू हूँ लेकिन सभी धर्म का आदर करता हूँ, , मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा आदि सभी जगह जाता हूँ. मैं‘हिंदूवादी नेता' नहीं, बल्कि हर धर्म और हर वर्ग के नेता हूँ.
इस दौरान जब राहुल गांधी से एक पत्रकार ने पूछा कि आपको भाजपा वाले पप्पू क्यों कहते हैं राहुल गांधी का जवाब था कि मैं शिवभक्त हूँ शंकर जी का दूसरा नाम भोले नाथ है और मै भला और भोला हूँ.
कांग्रेस की उम्मीदें
2013 के विधानसभा चुनाव के दौरान मालवा-निमाड़ की करीब 86 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस केवल 10 सीटें ही जीत सकी थी. लेकिन इस बार बदली परस्थितियों के चलते कांग्रेस को माहौल अपने अनुरूप लग रहा है, मंदसौर में किसान आंदोलन की राखें अभी बुझी नहीं है,सवर्ण आन्दोलन का भी विपरीत असर पड़ सकता है. किसानों के आक्रोश और सवर्ण जातीय की नाराजगी में कांग्रेस अपनी वापसी का रास्ता देख रही है. बसपा से गठबंधन का न हो पाने को भी कांग्रेस अपने लिये प्लस पॉइंट के रूप में देख रही है कांग्रेस को लगता है कि इससे स्वर्ण मतदाता उसकी तरफ वापसी कर सकते हैं
बहरहाल मध्यप्रदेश में राहुल के चुनावी अभियान के उमड़ने वाली भीड़ कितना वोट में तबदील होगी यह आने वाला वक्त ही बताएगा. लेकिन उन्होंने चुनावी माहौल में हलचल जरूर पैदा कर दिया है
बॉक्स 1- मध्यप्रदेश में चुनाव अभियान से नरेंद्र मोदी की दूरी ?
ऐसा लगता है कि मध्यप्रदेश में में चुनाव अभियान से भाजपा के सबसे बड़े स्टार प्रचारक सेफ दूरी बना कर चल रहे हैं, जहां एक तरफ राहुल गांधी मध्यप्रदेश को सबसे ज्यादा समय दे रहे हैं और यहां उनके निशाने पर शिवराज से ज्यादा मोदी और उनकी सरकार ही होती है वहीँ नरेंद्र मोदी प्रदेश के चुनावी परिदृश्य से अभी तक नरादाद हैं. राज्य में भाजपा के चुनाव प्रचार अभियान में भी केंद्र की उपलब्धियां पर ना के बराबर हो फोकस किया जा रहा है.
खबरें आ रही है कि मध्यप्रदेश में नरेंद्र मोदी के चुनावी सभाओं में कमी की गयी है और अब वे मध्यप्रदेश में केवल दस जनसभायें ही करेंगें इसी तरह से राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी वे तुलनात्मक रूप से कम जनसभायें करेंगें. शायद निगेटिव बैक को देखते हुये यह निर्णय लिया गया है जिससे अगर इन राज्यों में भाजपा की हार होती है तो इसके जिम्मेदारी मौजूदा मुख्यमंत्रियों पर टाली जा सके और 2019 लोकसभा चुनाव के लिये मोदी ब्रांड को बचाये रखा जा सके .
इसी तरह से अमित शाह भी यहां बहुत ज्यादा सक्रिय दिखाई नहीं पड़ रहे हैं. पहले बताया गया था कि विधानसभा के दौरान वे मध्यप्रदेश में ही कैम्प करेंगें लेकिन अंत में ऐसा कुछ नहीं हुआ. अमित शाह का पिछला मालवा दौरा भी बहुत उत्साहजनक नहीं रहा इस दौरान उन्हें सपाक्स जैसे संगठनों की तरफ से विरोध का सामना पड़ा था.
बॉक्स 2 - दिग्गी राजा व्यस्त है
राहुल गांधी के मालवा दौरे के दौरान भी दिग्विजय सिंह अपने आप को बैकग्राउंड में ही बनाये रखे हालांकि इंदौरउनकी जमीन मानी जाती है लेकिन फिर भी वे नरादद रहे. राहुल के मालवा दौर के दौरान दिग्विजय सिंह की जगह उनके दो ट्वीट सामने आये पहले ट्वीट में उन्होंने उन्होंने राहुल का इंदौर में स्वागत करते हुये लिखा कि 'मैं इंदौर में पैदा हुआ स्कूल व कॉलेज की शिक्षा भी इंदौर में हुई आज राहुल गॉंधी जी इंदौर पहुँच रहे हैं मैं उनकाहार्दिक स्वागत करता हूँ”.जबकि अपने दुसरे ट्वीट में उन्होंने राहुल के दौरे में शमिल ना हो पाने के पीछे तर्क देते हुये लिखा कि “मुझे अध्यक्ष जी ने कुछ आवश्यक कार्य सौंपा हुआ है जिसके कारण राहुल जी के इंदौर उज्जैनकार्यक्रम में अनुपस्थित रहूँगा क्षमा करें. सभी मित्रों से राहुल जी का गर्म जोशी से स्वागत करने की अपील करताहूँ”.
गौरतलब है कि दिग्विजय सिंह लगातार राहुल गाँधी के दौरों और जनसभाओं से दूरी बनाकर चल रहे. हालांकि परदे के पीछे से वे काफी सक्रिय हैं. दरअसल दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश में पिछले करीब दो सालों से लगातर जमीनस्तर पर अपनी सक्रियता बनाये हुये हैं और प्रदेश की राजनीति में इस मामले में उनका मुकाबला केवल शिवराज ही कर सकते हैं. मध्यप्रदेश में उनकी जमीनी पकड़ का अंदाजा पिछले दिनों आजतक चैनल के कार्यक्रम में दिये गये उनके उस बयान से लगाया जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा था कि मध्य प्रदेश को थोड़ा बहुत में भी जानता हूँ मैं हर ब्लॉक के लोगों को जानता हूं, कौन कितना लोकप्रिय है, थोड़ा बहुत मुझे भी अंदाजा है, परिक्रमा करने के बाद इसे मैंने और पुख्ता कर लिया,आज 230 सीटों पर कौन उम्मीदवार हो सकता है, मैं बिना कागज देखे आपको बता सकता हूं.
जाहिर है दिग्विजय सिंह जैसे मिजाज का नेता अगर परदे के पीछे रहकर व्यस्त है तो इसके गहरे निहितार्थ हो सकते हैं.
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